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Sociology of religion: बौद्ध और जैन धर्म (Jainism and Buddhism) परिचय ।

Sociology of religion
 
Sociology of religion
तीर्थकर को जिन' भी कहते है जो जैन धार्मिक मार्ग के प्रदर्शक है।

Sociology of religion: भारत में बुद्ध धर्म का विकास सामाजिक सांस्कृतिक संक्रमण की उस वृहद् प्रक्रिया का हिस्सा है जो ग्रीस से लेकर चीन तक ईसा पूर्व पहली शताब्दी में चल रही थी।

Sociology of religion: भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म एक क्रांतिकारी और विस्तार पाने वाला धर्म रहा है, जो इतना अधिक प्रतिष्ठित रहा है कि विश्व पटल पर इसे चीन से ग्रीस तक देखा जा सकता है। संस्कृति के मुख्य केंद्रों पुरातन सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाएँ अधिक जटिल राजनैतिक आर्थिक के बलते विखंडित हो रही थी.

Sociology of religion:  साथ ही नगरी का विकास और साम्राज्यवादी राज्यों का श्रेय विस्तार हो रहा था। सभी दशाओं में आर्थिक तथा राजनैतिक प्रगति गंभीर सामजीक  दुर्व्यवस्थाओं, कठिनाइयों तथा परंपरागत धार्मिक जड़ी से मिली-जुली थी। जैन धर्म के अनुयायी ऐसा मानते है कि इसका विकास पुरातन काल में हुआ है। भगवान महावीर 24वे इस दुनिया के इस युग (कल्प) के अंतिम तीर्थकर माने जाते हैं।

Sociology of religion: तीर्थकर को जिन' भी कहते है जो जैन धार्मिक मार्ग के प्रदर्शक है। समाज में फैले वर्ग, वर्ण, नस्ल, धर्म और सम्प्रदाय के खिलाफ बौद्ध व जैन धर्म का उदय निचली जाति के लोगों के अंदर समानता की भावना का विकात करना था। बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु (नेपाल) में 5वीं शताब्दी ईपू, में हुआ था।

Sociology of religion: कम्पोडिया में बौद्ध धर्म का विस्तार ऽवीं शताब्दी में जयंवरम् प्रथम तथा सूर्यवरन् सप्तम की एक माना जाता है। नियतिवाद पर यह बेहद अफसोस करता है और धर्म के महत्व को विशेष रूप से प्रत्येक व्यक्ति के लिए हितकर मानता है।

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