सिरसा में नहरी विभाग के खिलाफ किसानों का हल्ला बोल: 90 गांवों के किसानों ने उठाई आवाज. 

सिरसा के किसानों की यह लड़ाई सिर्फ पानी की नहीं बल्कि उनके हक की लड़ाई है।
 
सरकार को दी चेतावनी

हरियाणा के सिरसा जिले में एक बार फिर किसानों का गुस्सा सड़कों पर नजर आया। जिले के करीब 90 गांवों के किसानों ने सोमवार को नहरी विभाग कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया। किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले नहरी विभाग के मुख्य गेट के सामने डेरा डाल दिया और सरकार व अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी की।

किसानों का कहना है कि लंबे समय से वे नहर टेलों तक पानी न पहुंचने की समस्या से जूझ रहे हैं। जिससे धान, कपास और अन्य खरीफ फसलें सूखने की कगार पर पहुंच गई हैं। किसानों का आरोप है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद नहरी विभाग और जिला प्रशासन उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर रहा है।

क्या है किसानों की मुख्य मांगें?

टेलों तक पानी की पूरी आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

टेंपरेरी राइस शूट (TRS) की फीस भराई जाए और रसीद दी जाए।

जिन किसानों के मोगों की फीस बकाया है, उसे जल्द से जल्द क्लियर किया जाए।

नहरों की सफाई और मरम्मत का कार्य प्राथमिकता पर किया जाए।

किसान गुरजीत सिंह ने बताया कि उनके मोगों की फीस भरने में अनावश्यक देरी की जा रही है। "पहले समय पर भुगतान होता था, लेकिन अब कई महीने बीत जाने के बाद भी नहरी विभाग कोई जवाब नहीं दे रहा है," उन्होंने कहा।

सरकार को चेतावनी

किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो यह आंदोलन जिला स्तर से राज्य स्तर तक ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि फसलों के सूखने से आर्थिक नुकसान के साथ-साथ कर्ज का बोझ और आत्महत्या जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों ने बताया कि वे पिछले कई महीनों से SDO और XEN स्तर के अधिकारियों से मिलते आ रहे हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। "हम मजबूर हैं सड़कों पर उतरने के लिए। अगर हमारी सुनवाई नहीं हुई तो आगे बड़े आंदोलन की योजना तैयार है।"

प्रशासन की प्रतिक्रिया

फिलहाल प्रशासन की ओर से कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है। नहरी विभाग के अधिकारी प्रदर्शनकारियों से मिलने नहीं आए, जिससे किसानों में और ज्यादा नाराजगी देखी गई।

सिरसा के किसानों की यह लड़ाई सिर्फ पानी की नहीं बल्कि उनके हक की लड़ाई है। अगर जल्द ही सरकार और नहरी विभाग इस मसले पर ध्यान नहीं देते, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है। किसानों की मांगें वाजिब हैं और उनका समाधान प्राथमिकता पर किया जाना चाहिए।