भारत में महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।

Chopta plus:कल्पना वर्धन के अनुसार 'चाहे वर्ग पर या जाति विश्लेषण पर आधारित हो । परिवार स्तरीकरण अध्ययनों के लिए विश्लेषण की प्रमुख इकाइयों हैं। विस्तृत ढाँचे में यह पर्याप्त रूप से स्थित नहीं है कि लिंग द्वारा विभाजन एवं महिलाओं की स्थिति स्थायित्व एव गतिशीलता संबंधी इसके गुणधर्मों को प्रभावित करती है।
भारतीय समाज में नातेदारी की भूमिका स्तरीकरण की बुनियादी इकाई के रूप में परिवार एवं रोजाना के संबंधों के अलावा, परिवार के पुरुष मुखिया की भूमिका एवं पुरुष व महिलाओं के बीच स्थिति संबंधी समानता ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनकी जाँच करने की जरूरत है। माइकल मान पितृसत्ता, अर्थव्यवस्था एवं वर्ग संरचना की चर्चा करता है।
माइकल मान के अनुसार महिलाओं का कोष्ठीकरण, राजनीति में महिलाओं की सहभागिता, विकास कार्यक्रम एवं प्रक्रमों व नारीत्व के बावजूद भी कायम है। भारतीय समाज को पुरुष जाति और स्त्री जाति में विभाजित किया गया है।
महिलाओं की संकल्पना बनाते समय तथा उनके बारे में लिखते समय नीता कुमार चार तरीकों पर प्रकाश डालती है अर्थात् महिलाओं को नायिका के रूप में देखते हुए और उन्हें पुरुषों के विशेषाधिकार देते हुए महिलाओं को मानव "टकटकी" का केंद्रबिंदु बनाना, पितृसत्ता पर ध्यान देते हुए सैद्धांतिक तर्कमूलक दायरे में महिलाओं को मौजूदगी को देखना और जो उन्हें निरंतर इस दायरे में बाँधे रखती है और बाहर निकलने का कोई अवसर नहीं देना; ऐसे प्रछन्न तरीकों पर गौर करना जिनके चलते महिलाएँ अपने कार्य को पूरा करती हैं ।
मोनिशा बहल के अनुसार जिसने पश्चिम उत्तर प्रदेश में मणिपुर जिले में काम, वहाँ के ग्रामों में महिलाओं का जीवन उदासी से भरा है। इसका कारण है काम अत्यधिक होना ।
इसलिए पीड़ा सहने की इसमें अनंत क्षमता है इस नजरिए पर भी आलोचनात्मक ढंग से विवार किया गया। जो एना लिडल एवंरना जोशीने जेंडर , जाति और वर्ग के बीच अतः संबंधों के संदर्भ में भारतीय महिलाओ जातियों ने जाति एवं लिंग संबंधी विभाजनको और अधिक फस उत्तमावस्था के लिए उनकी आर्थिक उत्तभावस्था एवं प्रतिरक्षित कोसमेत कर दिया था।
महिलाओं के आंदोलनों ने मुख्यता ऐसे मुद्दो पर ध्यान केंद्रित किया है जो है जैसे महिलाओं के प्रति हिंसा कार्य संबद्ध असमानताएँ शिक्षा एवं रोजगार तक स्वास्थ्यगृहिणियों के कार्य को सामाजिक मान्यता एवं उनके कार्य के लिए पारिश्रमिक। विमन एवं महिलाओं को महत्व न मिलना मूल्य वृद्धि आदि।
जीवन के विविध भागों में शोषण एवं उत्पीड़न के मुद्दों को उठाना अर्थात् परिवार, विवाह स्था धर्म एवं राजनीति आदि जैसी जगहों पर ध्यान देकर नारीवादी विविध भारतीय डर मुद्दों के विस्तृत परिदृश्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
हर किस्स की रचना में यह माना गया है कि पितृसत्ता, स्तरीकरण व्यवस्था एवं महिलाओं स्थिति गूढ रूप से अत संबद्ध है और महिलाओं की स्थिति में किसी भी किस्म के एत्मक बदलाव का अर्थ पितृसत्ता और स्वरीकरण व्यवस्था पर प्रहार करने जैसा होगा। राजनैतिक विश्लेषण के माध्यम से असमान व्यवहारों को गूढ रूप से जमे सांस्कृतिक मूल्यों के में व्यक्त किया गया है जो कि पुरुषत्व एवं नारीत्व की संज्ञा देते हैं। लीला दुबे जेंडर मता की पुष्टि के रूप में विविध पितृसत्तात्मक संस्कृतियों में 'बीज' और घरती की गिक संकल्पनाओं का प्रयोग करते हुए स्त्री एवं पुरुष के बीच के संबंध की चर्चा करती है।
साक्षरता रचनाओं में महिलाओं को रूदिगत स्वरूप में पेश किया गया है। पिछले तीन महाकों में लिंग संबंधी असमानता के विविध पहलुओं पर लिखित रचनाओं ने अर्थव्यवस्था में ऐलाओं की प्रछन्नता और बेरोजगारी, निर्णयन प्रक्रिया में उनकी असहभागिता एवं पुरुष राधिकार के रूप में महिलाओं के प्रति अपराध को खासतौर पर उभारा है।
भूस्वामित्व का उन्मूलन और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण के विध्वंस ने की सकारात्मक ढंग से महिलाओं को प्रभावित किया है। मेनशर एवं सरदामोनी घाते हैं कि गरीची काखा से नीचे के परिवारों के लिए महिला की आय होना बेहद जरूरी है। अधिकांश महिलाएँ ऐन किस्मों के कामों में जुटी हुई है।