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राम नाम की महिमा और तुलसीदास जी का जीवन दर्शन

गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय और रामचरितमानस की दिव्यता

वाल्मीकि से प्रेरणा, हनुमान से शक्ति: तुलसीदास जी की आध्यात्मिक यात्रा

वाल्मीकि से प्रेरणा, हनुमान से शक्ति: तुलसीदास जी की आध्यात्मिक यात्रा

शिव, सीता और राम: तुलसीदास जी के काव्य में देवताओं की भूमि

 
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जय श्री राम

गोस्वामी तुलसीदास जी: रामभक्ति की अमर ज्योति।

 

गोस्वामी तुलसीदास जी भारतीय संत परंपरा के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। उन्होंने अपनी काव्य रचना *रामचरितमानस* के माध्यम से भक्ति, मर्यादा और जीवन के आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी रचनाएँ आज भी करोड़ों श्रद्धालुओं के जीवन का पथप्रदर्शक हैं।

तुलसीदास जी ने न केवल प्रभु श्रीराम की कथा का सुंदर वर्णन किया, बल्कि अपने काव्य के हर श्लोक में आध्यात्मिक गहराई और मानवता की शिक्षा छुपा दी।

रामचरितमानस की वंदना और सरस्वती पूजन

जब तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना आरंभ की, तो उन्होंने सबसे पहले सरस्वती जी की वंदना की। यह देखकर किसी ने उनसे प्रश्न किया, "जब हमारे शास्त्रों में प्रथम पूज्य श्री गणेश जी को माना गया है, तो आप सरस्वती जी की वंदना सबसे पहले क्यों कर रहे हैं?"

इस पर तुलसीदास जी ने उत्तर दिया – “हमें यह ज्ञान कि श्री गणेश जी प्रथम पूज्य हैं, यह भी तो माता सरस्वती जी की कृपा से ही मिला है। ज्ञान की देवी होने के नाते मैं पहले उन्हें ही प्रणाम करता हूं।यही उनकी विनम्रता और ज्ञान के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

शिव और चंद्रमा का प्रतीकात्मक संदेश

तुलसीदास जी आगे माता पार्वती और भगवान शिव की वंदना करते हैं। शिव जी के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा के बारे में एक जिज्ञासु ने पूछा – "यह चंद्रमा तो टेढ़ा है और इसमें दोष हैं, फिर भी आप इसे क्यों धारण किए हैं?"

शिव जी ने उत्तर दिया – “यह सत्य है कि इसमें दोष हैं, किंतु इसका नाम प्रभु रामचंद्र जी के नाम से जुड़ा है, और जो भी राम नाम से जुड़ता है, वह पूजनीय हो जाता है।

यहां तुलसीदास जी का संकेत स्पष्ट है भगवान के नाम से जुड़कर दोषी भी महान बन सकता है।

वाल्मीकि, हनुमान और जानकी जी को प्रणाम

तुलसीदास जी ने वाल्मीकि जी और हनुमान जी को प्रणाम करते हुए उनकी प्रेरणा को नमन किया। इसके बाद वे श्री सीता माता की वंदना करते हैं। किसी ने उनसे पूछा – "सृष्टि की रचना तो ब्रह्मा जी करते हैं, फिर आप सीता जी को पहले क्यों प्रणाम कर रहे हैं?"

इस पर तुलसीदास जी ने अत्यंत गूढ़ उत्तर दिया – “सृष्टि रचना की शक्ति ब्रह्मा, पालन की शक्ति विष्णु और संहार की शक्ति शिव को यह सभी शक्तियाँ जगत जननी सीता जी (शक्ति) से ही प्राप्त होती हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं भगवान ने कहा है – ‘यह सृष्टि मेरी माया से निर्मित है।’”

गुरु महिमा और संत वंदना

तुलसीदास जी आगे लिखते हैं – “एकमात्र गुरुदेव ही हैं जो हृदय में प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं। उनकी कृपा से ही राम नाम का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।इसलिए वे गुरु, संतों, और सभी महापुरुषों को नमन करते हैं।

उनकी विनम्रता का उदाहरण देखिए वे कहते हैं, “मैं महापुरुषों की व्याख्या कैसे कर सकता हूँ? मेरी स्थिति तो उस सब्जी बेचने वाले की तरह है जो हीरे-जवाहरात के गुणों का वर्णन करे।यह आत्मविवेक किसी सच्चे संत में ही हो सकता है।

दुष्टों को भी दो बार प्रणाम

तुलसीदास जी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका समदृष्टि भाव। उन्होंने दुष्टों को भी दो बार प्रणाम किया। जब लोगों ने यह पूछा, तो तुलसीदास जी ने कहा – “दुष्ट दो बार में भी मान जाए तो यह प्रभु की कृपा मानी जाएगी। ये बिना कारण भी विवाद खोजते हैं। इनसे तो और अधिक करुणा करनी चाहिए।

वे एक दृष्टांत भी देते हैं – “नाव में शेर और बकरी नदी पार कर रहे थे। शेर ने बकरी से कहा, ‘तू मुझ पर धूल क्यों उड़ा रही है?’ बकरी बोली, ‘महाराज, आप चाहे दंड दें, पर झूठा बहाना क्यों बना रहे हैं?’ यही हाल दुष्टों का है वे बिना कारण भी झगड़ा कर सकते हैं।

तुलसीदास जी की भक्ति और दर्शन

तुलसीदास जी का दर्शन एक ही मूल विचार पर केंद्रित है राम नाम ही सबका उद्धार करता है। उन्होंने समाज को यह सिखाया कि जो भगवान से जुड़ता है, वही जीवन के पार उतर सकता है। चाहे साधु हो या दुष्ट राम नाम सबको शुद्ध करता है।

तुलसीदास जी का यशस्वी जीवन

तुलसीदास जी केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस युग में थे। उनकी रचनाओं से न केवल साहित्यिक सौंदर्य झलकता है, बल्कि अध्यात्म का गहरा सागर भी उमड़ता है।

जय श्री राम।

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